बस्ते के बोझ तले दबा बच्चो का बचपन

चित्रकूट में बूथ लेवल अधिकारियों संग हुई बैठक हमीरपुर में व्यय प्रेक्षक ने किया निरीक्षण कांग्रेस को हराने के लिए कांग्रेसी ही काफी है : वित्त मंत्री जेपी दलाल स्वीप कार्यक्रम भाजपा प्रदेश अध्यक्ष राजीव बिंदल ने दावा किया है कि भाजपा 4 सौ का आंकड़ा पार करेगी और प्रदेश की चारों लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करेगी जीतू पटवारी ने अलीराजपुर में की प्रेस कांफ्रेंस मत प्रतिशत बढ़ाने के लिए प्रचार प्रसार- बैतूल कांग्रेस को रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार का अनुभव और हमें जनसेवा का : मनोहर लाल रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी सौरभ गहरवार ने अगस्त्यमुनि से गौरीकुंड तक राष्ट्रीय राजमार्ग सहित अन्य व्यवस्थाओं का निरीक्षण किया मौसम- प्रदेश मूक बधिर नव दंपत्ति ने शत-प्रतिशत मतदान का दिया संदेश रक्षामंत्री राजनाथ सिंह का लखनऊ एयरपोर्ट पर किया गया स्वागत जोधपुर : एनसीबी और गुजरात एटीएस कि कार्यवाही 300 करोड़ की ड्रग्स बरामद झुंझुनू : सरपंच नीरू यादव अमेरिका के न्यूयॉर्क में देगी उद्बोधन पीलीभीत टाइगर रिजर्व में पहली मई से शुरू होगी बाघों की गणना पीलीभीत के राजेश राठौर गीत के माध्यम से मतदाताओं को कर रहे जागरूक निर्वाचन आयोग ने लोकसभा चुनाव 2024 के छठे चरण के लिए अधिसूचना जारी कर दी है लोकसभा चुनावों के चौथे चरण के लिए नाम वापस लेने की आज अंतिम तिथि है राजनाथ सिंह के नामांकन को लेकर लखनऊ में विशेष उत्साह, सुरक्षा बल तैनात आज का राशिफल

बस्ते के बोझ तले दबा बच्चो का बचपन

Khushboo Diwakar 04-09-2019 17:21:08

बच्चे बेचारे आजकल बस्ते यानी बैग के भार से दबे जा रहे हैं जो बहुत अधिक है। आजकाल यह फैशन बनता जा रहा है कि जितना बड़ा और भारी स्कूल का बैग होगा उस विद्यालय में उतनी ही अच्छी पढाई होगी।
विचारणीय है कि क्या वास्तव में शिक्षा का स्तर इतना बढ़ गया है क्या भारी भरकम बोझ के बिना पढाई सम्भव नहीं हो सकती? शिक्षाविद बच्चों को इस बोझ से मुक्ति दिलाने में समर्थ हो सकेंगे?
प्राचीन काल में भारतीय शिक्षण पद्धति ऐसी होती थी जहाँ बच्चों पर पुस्तकों का बोझ कम होता था। जीवन को क्रियात्मक बनाने पर बल दिया जाता था। आज की शिक्षा व्यावसायिक हो गई है।
इस बोझ के कारण बच्चों की रीढ़ की हड्डी पर बहुत दुष्प्रभाव पड़ता है और वे कमर दर्द, कंधो के दर्द और थकान आदि से परेशान हो सकते हैं।
स्कूल बैग का वजन बच्चे के स्वास्थ्य और शारीरिक विकास पर बुरा असर डाल रहा है। 2014 में की गई एक स्टडी के अनुसार भारत में बच्चों के स्कूल बैग का औसत वजन 8 किलो होता है।
एक साल में लगभग 200 दिन तक बच्चे स्कूल जाते हैं। स्कूल जाने और वहाँ से वापस आने के समय जो भार बच्चा अपने कंधों पर उठाता है यदि उसे आधार मानकर गणना की जाए तो वह साल भर में 3200 किलो का वजन उठा लेता है। ये भार एक Pickup ट्रक के बराबर है। अच्छे अंक लाने के दबाव और भारी भरकम बोझ के नीचे बचपन दब रहा है। हैरानी की बात है कि कोई इसके विरोध मे आवाज नहीं उठाता।
स्कूल अभिभावकों को जिम्मेदार बताते हैं कि वे बच्चों के टाइम टेबल चेक नहीं करते। अभिभावकों का कहना है कि स्कूली बच्चों के पास अनेक विषयों की अलग-अलग किताबें और कापियाँ होती हैं। उन्हें हर दिन स्कूल ले जानी पड़ती हैं जिससे वे परेशान हो जाते हैं। बच्चों को सिखाएँ कि स्कूल बस या वैन में बैग को नीचे रखे। अनावश्यक वस्तुओं को स्कूल बैग में न रखें। कुछ बच्चे इतने आलसी होते हैं जो हर रोज बैग
न लगाना पड़े अत: सारा सामान उसी में रखते हैं।

कुछ दिन पूर्व महाराष्ट्र सरकार ने एक अनोखी पहल की। तीसरी कक्षा से आठवीं कक्षा तक के बच्चों को बिना बस्ते के स्कूल बुलाया गया। स्कूल ने इस दिन को ‘वाचन प्रेरणा दिवस’ का नाम दिया। इसी तर्ज पर केरल ने भी यह पहल की। हालांकि बच्चों के बस्ते का बढ़ता बोझ अब दिल्ली में भी कम होने लगा है। सरकारी स्कूलों के साथ-साथ कई प्राइवेट स्कूलों ने भी यह कदम उठाया है। गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अन्य के मुकाबले स्कूली बस्तों का बोझ कम ही है।
तीसरी कक्षा में बच्चों के लिए भारी बैग मुसीबत बन जाता है। कई ऐसे भी पीरियड हैं, जो स्कूलों में खाली जाते हैं, कई बार कुछ पढ़ाई भी नहीं होती पर बैग में किताबें, कापियाँ तो सारी ले जानी पड़ती हैं।
सीबीएसई के अनुसार दूसरी कक्षा तक के बच्चों के बस्ते स्कूल में ही रहने चाहिए। बाकी बच्चों के लिए शिक्षकों और प्रिंसिपल को मिलकर ऐसा टाइमटेबल बनाना चाहिए, जिसमें बच्चों को ज्यादा किताबें न लानी पड़ें। चिकित्सकों की राय मानें, तो भारी बस्ता शारीरिक और मानसिक विकास का असर डालता है।
1980 में आर. के. नारायण ने राज्यसभा में बच्चों के बस्ते के बोझ को कम करने की आवाज उठाई थी। आज 36 वर्ष बाद भी बच्चे उसी बोझ से दबे हैं।
स्कूली बस्ते का बोझ कम करने के लिए इस बार दिल्ली सरकार ने पहल की है। सरकार का मानना है कि स्कूलों में पढ़ाई का समय कम करके खेल-कूद और दूसरी गतिविधियों का समय बढ़ाया जाए।
इस पहल का फायदा तभी हो सकता है जब बच्चों को बच्चों को रोबोट की तरह न पढ़ाया जाए। बस्ते रखने का प्रबन्ध स्कूल को सुनिश्चित करना चाहिए। कुछ स्कूलों ने ऐसे उपाय किए हैं। बच्चे उतनी ही किताबें घर ले जाएँ, जितनी उन्हें जरूरत है।
भारी बस्ते के बोझ से छुटकारे के लिए सटीक उपाय ढूँढने होंगे। दृढ़ इच्छाशक्ति से ही नए विकल्प खुल सकते हैं और बच्चों के लिए भविष्य बेहतर शिक्षा और स्वस्थ जीवन ला सकता है।

  • |

Comments

Subscribe

Receive updates and latest news direct from our team. Simply enter your email below :